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जि॒ह्वाभि॒रह॒ नन्न॑मद॒र्चिषा॑ जञ्जणा॒भव॑न् । अ॒ग्निर्वने॑षु रोचते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jihvābhir aha nannamad arciṣā jañjaṇābhavan | agnir vaneṣu rocate ||

पद पाठ

जि॒ह्वाभिः॑ । अह॑ । नन्न॑मत् । अ॒र्चिषा॑ । ज॒ञ्ज॒णा॒ऽभव॑न् । अ॒ग्निः । वने॑षु । रो॒च॒ते॒ ॥ ८.४३.८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:8 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:30» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् ! आपसे उत्पादित (एते+त्ये) ये वे (अग्नयः) सूर्य्य, विद्युत् और अग्नि आदि भिन्न-२ प्रकार के आग्नेय पदार्थ (इद्धासः) दीप्त होने से (पृथक्) पृथक्-२ (समदृक्षत) देख पड़ते हैं, यद्यपि सब समान ही हैं। पुनः (उषसाम्+केतवः+इव) प्रातःकाल के ये सब ज्ञापक हैं अथवा उष-दाहे। दाह के सूचक हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जिस ईश्वर के उत्पादित ये सूर्य्यादि अग्नि जगत् में उपकार कर रहे हैं, उसकी उपासना करो। उसकी परम विभूतियाँ देखो। तब ही उस प्रभु को पहिचान सकते हो ॥५॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमेवार्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् ! तव जनिताः। एते। त्ये=ते। अग्नयः। इद्धासः=इद्धाः दीप्ताः सन्तः। पृथक् पृथक्। समदृक्षत=सम्यग् दृश्यन्ते। अयं सूर्य्यः अयमग्निरिति पृथगिव भासते यद्यपि न तयोर्भेदः। पुनस्ते। उषसां केतव इव=ज्ञापका इव ॥५॥